ग़ाज़ा पर कब्ज़ा जमाने वाली ताकतें केवल ज़मीन हथियाने के इरादे से ही नहीं, बल्कि वहां के लोगों का मनोबल तोड़ने के लिए भी हमले कर रही हैं। इन हमलों का सबसे दुखद पहलू यह है कि मासूम बच्चे और आम नागरिक निशाने पर हैं। स्कूल, अस्पताल और घरों पर हमले करके यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि ग़ाज़ा के लोग अपने ही घर में असुरक्षित महसूस करें।
इस भयावह स्थिति को और भी खराब बनाता है कुछ बड़े देशों का समर्थन। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका जैसी शक्तियां इन हमलों की न केवल अनदेखी कर रही हैं, बल्कि सीधे या परोक्ष रूप से इनका समर्थन भी कर रही हैं। इन देशों की सरकारें अक्सर मानवाधिकारों की रक्षा की बात करती हैं, लेकिन जब बात ग़ाज़ा की आती है, तो वे चुप्पी साध लेती हैं या फिर अपनी नीतियों से इन हमलों को सही ठहराने की कोशिश करती हैं।
कल्पना कीजिए, एक बच्चा जो रात में चैन से सो रहा था, अचानक बमबारी की तेज़ आवाज़ से जाग जाता है। चारों ओर धुआं, चीख-पुकार और अफरा-तफरी मची होती है। उसे समझ नहीं आता कि उसके साथ क्या हो रहा है। जब वह अपने माता-पिता को पुकारता है, तो कई बार उसे कोई जवाब नहीं मिलता—क्योंकि वे शायद अब इस दुनिया में नहीं रहे।
कई बच्चे अपने ही घरों के मलबे के नीचे दब जाते हैं, कुछ गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और बाकी के चेहरे पर खून और डर की लकीरें साफ दिखाई देती हैं। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है, बल्कि ग़ाज़ा में रहने वाले सैकड़ों बच्चों की वास्तविकता है।
दुनिया की चुप्पी और पाखंड
इस भयानक स्थिति के बावजूद, दुनिया के बड़े देश और ताकतवर संगठन चुप हैं। जो देश मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करते हैं, वे भी इस अन्याय के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे। मीडिया भी कई बार इन घटनाओं को तोड़-मरोड़कर पेश करता है ताकि असली सच दुनिया के सामने न आ सके।
इस चुप्पी के पीछे कई कारण हैं—राजनीतिक फायदे, आर्थिक संबंध, और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन। लेकिन इन सबके बीच जो बात सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली है, वह यह है कि निर्दोष लोगों की जान की कीमत पर ये नीतियां बनाई जा रही हैं।
अब वक्त है जागने का
ग़ाज़ा में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं है, बल्कि यह मानवता के खिलाफ एक संगठित अपराध है। इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना केवल ग़ाज़ा के लोगों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया की है।
हर इंसान का यह कर्तव्य बनता है कि वह सच को पहचाने, पीड़ितों की मदद करने के लिए कदम उठाए और उन नीतियों का विरोध करे जो निर्दोष लोगों की ज़िंदगियां तबाह कर रही हैं। अगर दुनिया अब भी चुप रही, तो यह पाखंड हमेशा बना रहेगा और मासूमों का खून इसी तरह बहता रहेगा।
अब सवाल यह है—क्या हम इस अन्याय को सिर्फ देखते रहेंगे, या इसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाएंगे?