ग़ज़ा: जब मांओं के पेट चीरकर अजन्मे बच्चों को मार डाला गया, और दुनिया देखती रही!


 दुनिया आज जो कुछ ग़ज़ा में देख रही है, वह सिर्फ़ एक जंग नहीं, बल्कि एक खुला नरसंहार है। अमेरिकी, ब्रिटिश और पश्चिमी मिसाइलों से लैस ज़ायोनी कब्ज़ा सिर्फ़ बच्चों, औरतों और बुज़ुर्गों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर उन मासूम जिंदगियों को भी खत्म कर रहा है जो अभी मां के पेट में ही थीं। उन्हें दुनिया में आने का मौका तक नहीं मिला। यह कत्लेआम इतना बेरहम है कि मांओं के साथ उनके अजन्मे बच्चे भी मौत के घाट उतार दिए जा रहे हैं।


इसके बावजूद दुनिया के ठेकेदार आंखें मूंदे बैठे हैं। ये पाखंडी दुनिया अपने झूठे दावों में उलझी हुई है और इस खुले नरसंहार को नजरअंदाज कर रही है। बेगुनाहों की जान लेने वालों को "रक्षा करने वाला" बताया जा रहा है, जबकि असल में यह वही आतंकी क़ब्ज़ा है जिसने ज़मीन पर कब्ज़ा किया, वहां के लोगों को बेघर किया और अब उनके खून से अपनी सत्ता को मजबूत कर रहा है।

जो क़ब्ज़ा करे, दूसरों की ज़मीन छीन ले, वहां के लोगों को जबरन बेदखल करे, और बेरहमी से कत्लेआम मचाए—क्या वह "रक्षा" कर रहा होता है? हकीकत तो यह है कि यह एक आतंकवादी शासन है, जो सिर्फ़ तबाही और खून की भाषा जानता है। इससे भी अफ़सोस की बात यह है कि दुनिया के कुछ ताकतवर मुल्क, जो खुद को मानवाधिकारों का सबसे बड़ा पैरोकार बताते हैं, इन जालिमों की हिफ़ाज़त कर रहे हैं। बजाय इसके कि उन्हें उनके गुनाहों की सज़ा दी जाए, वे इन अपराधियों की सरपरस्ती कर रहे हैं और इस तरह मासूम फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ इस जारी कत्लेआम में बराबर के शरीक बन रहे हैं।



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