पाँच साल से कम उम्र के बच्चे, जिनमें छोटे-छोटे मासूम शिशु भी शामिल थे, ज़ालिम ज़ायोनी कब्ज़े वाले जहाज़ों ने अमेरिकन और पश्चिमी मिसाइलों से बिना किसी रहम के निशाना बना दिया।
उन मासूमों को बेरहमी से मार दिया गया, उनके नन्हे-नन्हे जिस्मों को मिसाइलों से चकनाचूर कर दिया गया, और उनके पूरे घरानों को ख़ाक में मिला दिया गया।
दुनिया खामोश तमाशा देखती रही, जैसे इन बच्चों की कोई अहमियत ही न हो।
अब हम इन चल रहे कत्ल-ए-आम को नज़रअंदाज़ करते हुए खोखले दावे करने वाले दोगले इंसानी हक़ों के तन्ज़ीमों की चीख-पुकार बर्दाश्त नहीं कर सकते।
कब्जे वाले जहाज़ों ने इन्हें उस वक्त मारा जब ये मासूम खेल रहे थे या सो रहे थे। कब्ज़े वालों ने उन्हें उनके सबसे नाजुक पलों में मार गिराया, जबकि इनके पास मासूमियत के सिवा कुछ भी नहीं था।
गाजा में फिलीस्तीनी बच्चे दुनिया के सामने मर रहे हैं, और दुनिया है कि बेखबर बनी बैठी है, जैसे इनकी ज़िन्दगी की कोई कीमत ही न हो।
ये बच्चे हक़ और आज़ादी के सच्चे शहीद हैं, और इनका पाक खून दुनिया की खोई हुई इंसानियत का गवाह बनकर खड़ा रहेगा, जो इनके साथ खड़े होने में नाकाम रही है।